ज्यादातर लोग भगवद गीता को क्यों नहीं पढ़ते या समझते हैं?

हरे कृष्ण !!

भगवद गीता के सन्दर्भ में सबसे बड़ा सवाल है –

ज्यादातर लोग भगवद गीता को क्यों नहीं पढ़ते या समझते हैं?

इसके तीन मुख्य कारण हैं:

  • समाज में भगवद गीता का प्रचार बहुत कम है।
  • लोग या तो भगवद गीता पढ़ चुके लोगों में महत्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन नहीं देखते हैं या जो उपदेश वे लोग (जिन्होंने गीता पढ़ी है) गीता के संबंध में अन्य लोगों को देते हैं, वह सामान्य रूप से लोगों के वर्तमान विश्वासमत से बहुत अलग होता है- यह इतना अलग होता है कि वे इसे केवल सैद्धांतिक ही मानते हैं, किन्तु अपनाने के लिए व्यावहारिक नहीं।
  • समाज के महान कहे जाने वाले लोगों में जो तथाकथित मूल्य देखने को मिलते हैं वे भगवद्गीता के उपदेशों के विपरीत होते हैं; इसलिए लोग आमतौर पर गीता को समझने की चेष्टा नहीं करते हैं। गीता कहती है: सामान्य लोग श्रेष्ठपुरुषों के आचरण का अनुसरण करते हैं, वे उनके द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करते हैं। तथाकथित महान लोगों में नेता, संगठनों में शीर्ष पद रखने वाले लोग, शिक्षाविद और प्रचुर संपत्ति वाले धनी व्यक्ति शामिल हैं।

 अगला सवाल आता है –

गीता में दी गई अवधारणाओं को पढ़ने या समझने में रुचि रखने वाले लोगों की संख्या में विशेष बढ़ोतरी के लिए क्या करने की आवश्यकता है?

आदर्श रूप से समस्या को ऊपर वर्णित तीन स्तरों पर नियंत्रित किया जाना चाहिए। लेकिन आम जनता की गीता की अवधारणाओं में दिलचस्पी बनने से पहले नेताओं को गीता के बारे में बात करने के लिए कहना एक व्यवहारिक दृष्टिकोण नहीं है।

नेताओं की लोगों की नसों पर पकड़ होती है और वे केवल उसी के बारे में बात करते हैं जिसमें लोग रुचि रखते हैं। जब वे चुने जाते हैं, तो लोगों द्वारा स्वीकृत रहें इसके लिए वे केवल उन मोर्चों पर काम करते हैं जो लोगों के सामान्य हित में होते हैं, भले ही वे लोगों की वास्तविक वृद्धि के विपरीत हों।

इससे पहले जब समाज में सब ओर समृद्धि और शांति थी, राजा (नेताओं) का मुख्य कार्य होता था, लोगों को उनके अपने जीवन के लक्ष्य के बारे में और उन मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना जो उस लक्ष्य की प्राप्ति कराने वाले हों। चूँकि इन मूल्यों को स्वयं ईश्वर ने बताया है, इसलिए पहले राजा का मुख्य रूप से कर्तव्य होता था लोगों को ईश्वर में लगाने का और इन मूल्यों को समझने के लिए प्रेरित करना जिससे वे (प्रजा) अंततः जीवन के लक्ष्य को पा लें।

आज के तथकथित महान लोग ईश्वर का नाम न तो सार्वजनिक रूप से, न ही कक्षा में और न ही किसी अन्य फोरम में लेते हैं।

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तो फिर रास्ता क्या है?

हमें बहुत बड़े पैमाने पर भगवदगीता के प्रचार करने की आवश्यकता है। वर्तमान में गीता का नाममात्र का प्रचार हुआ है।

आइए महिलाओं को शिक्षित करने के अभियान का उदाहरण लेते हैं- ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ के लिए एक विशाल पैमाने पर प्रचार शुरू किया गया था। महान नेता भी इस विषय पर बात करने से भी पीछे नहीं रहते हैं । देखें उस व्यापक अभियान को, जो अभी भी जारी है और फिर विचार करें कि गीता के लिए किस पैमाने पर प्रचार की हमें आवश्यकता है?

क्योंकि यहाँ तो जिन मूल्यों की वकालत की जा रही है (गीता में) वे मौजूदा विश्वास प्रणाली के विपरीत है। इसमें एक आशा की किरण यह है कि बहुत से लोगों को भगवान में विश्वास है और हमारी प्रचार योजनाओं में इस आशा-किरण का आश्रय लिया जा सकता है।

गीता की अवधारणा को समझने में शामिल लोगों पर जोर दिया जाना चाहिए कि वे गीता का अधिक से अधिक प्रचार करें । उन्हें बताया जाना चाहिए कि दूसरे लोग हर समय उनके व्यवहार को देख रहे हैं; इसलिए अपने प्रचार में सफल होने के लिए उन्हें अपने व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए लगातार काम करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि सकारात्मक बदलाव आने से पहले वे गीता का प्रचार शुरू ही नहीं करें।

इन परिवर्तनों के साथ एक दिन ऐसा आएगा जब नेता गीता के बारे में बात करना शुरू कर देंगे और तब भगवद्गीता को पढ़ने और समझने में रुचि रखने वाले लोगों की संख्या में बड़ी तेजी से वृद्धि होगी।

हरे कृष्ण !!